कोणार्क का सूर्य मंदिर : जहां मंदिर बनने से आज तक पूजा नहीं हुई -
आपने अपने जीवन काल में कई मंदिर देखे होंगे, और मंदिरों में आपने देखा होगा कि सुबह और शाम निश्चित रूप से पूजा की जाती है लेकिन हमारे देश भारत में एक ऐसा मंदिर भी मौजूद है , जहां पर आज तक पूजा नहीं हुई है | तो कौन सा है वह मंदिर और क्यों नहीं होती है या पूजा सारी जानकारी आज हम इस पोस्ट में जानेंगे |
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हम बात करने जा रहे हैं कोणार्क के सूर्य मंदिर के बारे में, संपूर्ण विश्व में हमारे देश भारत में एक ऐसा अद्भुत मंदिर है जहां पर मंदिर तो है लेकिन यहां पर किसी देवी देवता की पूजा नहीं की जाती है आज तक इस मंदिर में पूजा नहीं हुई है कोणार्क के सूर्य मंदिर को अंग्रेजी में " ब्लैक पगोड़ा "भी कहा जाता है | भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी जिले में यह मंदिर स्थित है, विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ पुरी मंदिर को कौन नहीं जानता आप सभी लोग जानते होंगे जगन्नाथ पुरी मंदिर का नाम तो आपने सुना ही होगा जगन्नाथ पुरी मंदिर से 21 किलोमीटर उत्तर पूर्व की ओर एक चंद्रभागा नदी है और इसी चंद्रभागा नदी के किनारे पर यह मंदिर कोणार्क का सूर्य मंदिर मौजूद है|
मंदिर का इतिहास -
अगर इस मंदिर के इतिहास की बात करें तो इस मंदिर का निर्माण गंग वंश के राजा नरसिम्हा प्रथम के द्वारा कराया गया था | सन 1250 में इस मंदिर का निर्माण हुआ था और कोणार्क सूर्य मंदिर अपनी विशेष प्रकार की शिल्प कला के कारण न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है और इसी कारण से पूरी दुनिया से इस विशेष शिल्प कला को देखने के लिए, निहारने के लिए पूरे विश्व से पर्यटक यहां आते हैं | यह मंदिर वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में से एक मंदिर माना जाता है जिसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में स्थान मिला है |
मंदिर की वास्तुकला -
इस मंदिर को यूनेस्को के द्वारा वर्ष 1984 में विश्व धरोहर में शामिल किया गया है | भारत में वैसे तो बहुत सारे सूर्य मंदिर है लेकिन उन सब में अद्भुत और रोचक मंदिर कोणार्क का सूर्य मंदिर ही कहा जा सकता है | तो बात करते हैं कोणार्क के सूर्य मंदिर से जुड़ी कुछ बातों के बारे में , सबसे पहले बात करते हैं मंदिर की वास्तुकला के संबंध में, यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है और इसी वजह से इसका निर्माण सूर्य के रथ के आकार में किया गया है इस मंदिर को जब आप देखेंगे तो पाएंगे कि जिस प्रकार सूर्य सात घोड़ों के रथ पर विराजमान होकर चलते हैं ठीक उसी प्रकार से इस मंदिर का जो आकार है इस मंदिर का जो रूप है इस प्रकार का है मानो जैसे कोई रथ हो जिसके अनुसार मंदिर में सात घोड़े बनाए गए हैं और 12 पहियों की जोड़ियां यहां पर आपको दिखाई देगी | अब इन सात घोड़ों में से केवल एक ही घोड़ा बचा हुआ है क्योंकि बाकी की घोड़े ध्वस्त हो चुके हैं |
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धुप घड़ी-
इस मंदिर की एक विशेष बात यह है कि इस मंदिर में एक धुप घड़ी है यह मंदिर का मुख्य आकर्षण है इस मंदिर का मुख्य आकर्षण रथ में बने 12 पहियों की जोड़ी है यह पहिये साधारण पहिये नहीं कहे जा सकते हैं क्योंकि यही पहिये हमें सही समय बताते हैं और इसी कारण इन पहियों को 'धुप घड़ी' भी कहा जाता है | कोई भी इंसान इन पहियों की परछाई से ही सही समय का अंदाजा लगा सकता है, जो कि उस समय की एक उत्कृष्ट तकनीक को दर्शाता है , किस प्रकार से वहां के वास्तुविज्ञो ने ऐसे मंदिर का निर्माण कर डाला जो एक प्राकृतिक घड़ी के रूप में भी कार्य करता है |
चुंबक पत्थर-
इसके आलावा इस मंदिर में एक विशेष बात है यहां का चुंबक पत्थर, कई कहानियों या कई कथाओं के अनुसार, सूर्य मंदिर के शिखर पर एक चुंबक का पत्थर लगा हुआ है,और इस पत्थर के प्रभाव से कोणार्क के समुंद्र से गुजरने वाले सभी सागर पोत ,सभी नाव ,सभी जहाज इस ओर खिंचे चले आते हैं जिससे उन्हें भारी क्षति हो जाती है ऐसा माना जाता है |
अन्य एक कहानी या कथा के अनुसार इस पत्थर के के कारण पोतो के चुंबकीय दिशा निदेशक यंत्र भी सही दिशा नहीं बताते हैं, और इस कारण अपने पोतों/जहाज को बचाने के लिए मुस्लिम नाविकों के द्वारा इस पत्थर को निकाल कर ध्वस्त कर दिया गया | इस मंदिर का यह पत्थर एक केंद्रीय शिला का कार्य कर रहा था जिसमें मंदिर की दीवारों के सभी पत्थर संतुलन में थे, तो जब इस पत्थर को तोड़ तोड़कर निकाल दिया गया, तो उसके हटने के कारण मंदिर की दीवारों का संतुलन खोने लगा और असंतुलित होकर मंदिर की दीवारें गिर पड़ी इस घटना का कोई ऐतिहासिक विवरण कहीं पर उपलब्ध नहीं है तो इसे मात्र काल्पनिक कहानी भी कहा जा सकता है, लेकिन स्थानीय लोग ऐसा मानते हैं कि सूर्य मंदिर के शिखर पर एक चुंबकिये पत्थर अवश्य था |
विचित्र बाते -
इसके अलावा इस मंदिर की एक विशेष बात है कि यहां पर आज भी आत्माएं नृत्य करती है | सूर्य मंदिर के पास रहने वाले पुराने लोगों का, बुजुर्ग लोगों का कहना है कि उन्होंने मंदिर के अंदर से गाने और नृत्य की आवाज सुनी है ,जब मंदिर में कोई नहीं है तब भी इस मंदिर में से नाचने गाने की आवाज आती है और आज भी ऐसी आवाज सुने जाने का दावा कई लोग करते हैं | यहां के लोगों का मानना है, कि यह आवाजे उन नाचने वाली स्त्रियों की आत्माएं हैं जो कि कभी राजा के लिए यहां नृत्य करा करती थी | लेकिन विचित्र बात तो यही है कि मंदिर होकर भी वहां से आत्माओं की आवाज कैसे आ सकती है लेकिन स्थानीय लोगों की मानें तो यहां पर आत्माए नृत्य करती है |
क्यों नहीं होती हैं यहां पूजा- Konark temple mystery
अब बताते हैं कि यहां पर पूजा क्यों नहीं होती है जो कि यहां का सबसे महत्वपूर्ण बात है | कोणार्क के सूर्य मंदिर में आज तक पूजा नहीं हुई और यहां इस मंदिर से कई रहस्य्मयी आवाजे आती है | सुनने में थोड़ा आपको अजीब लग सकता है लेकिन इसके पीछे जो कहानी है वह इस प्रकार है की,राजा नरसिम्हा प्रथम ने इस मंदिर को बनाने के लिए लगभग 1200 शिल्पकारों को नियुक्त किया था, पूरे 12 वर्ष का समय उन्हें बनाने के लिए दिया गया मंदिर का निर्माण करने का मुख्य कार्य वास्तुकार महाराणा बिसु को दिया गया महाराणा बिसु के निरीक्षण में मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो गया राजा ने यह भी आदेश दिया कि अगर मंदिर का कार्य निर्धारित समय में पूरा ना हुआ तो सभी 1200 वास्तुकारों को जान से मार दिया जाए, उन्हें मृत्यु दंड दिया जाए | समय बीतने लगा मंदिर तैयार होने लगा 12 वर्ष बीतने वाले थे, और मंदिर का कार्य लगभग पूरा होने वाला था लेकिन मंदिर की मुख्य शिला सही तरीके से मंदिर में स्थापित नहीं हो पा रही थी मुख्य शिला को जब भी स्थापित किया जाता तो बार-बार ऊपर से नीचे गिर जाया करती थी मुख्य वास्तुकार बिसु को समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करना चाहिए और निर्धारित समय से 2 दिन पहले की बात है, मुख्य शीला को लगाने का प्रयास किया जा रहा था और जब मुख्य शीला ठीक से नहीं लगी तो उनके दिमाग में यह विचार आने लगा कि अगर मंदिर का कार्य पूरा नहीं हुआ तो राजा सभी 1200 लोगों को मृत्युदंड दे देगा और राजा इन 12 वर्ष के कठिन परिश्रम के बदले सब को मृत्युदंड देगा|
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उसी क्षण वहां पर बिसु का पुत्र आता है जिसका नाम धर्म पद होता है, तो धर्म पद उसी समय वहां पर आता है और वह मंदिर में उसको ढूंढता हुआ, मंदिर के अंदर आ जाता है | जब धर्म पद से बिसु की बात होती है तो बिसु अपने पुत्र को मुख्य शिला के बारे में बताते हैं कि किस प्रकार से मुख्य शिला बार-बार स्थापित करने के बावजूद भी नीचे गिर जाती है | पिता की बात सुनकर धर्म पद मुख्य शीला को लगाने के लिए पहुंच जाता है ,और आप इसे चमत्कार माने या कुदरत का करिश्मा, बिसु के पुत्र धर्म पद के द्वारा स्थापित किया जाता है तो कुछ ही देर में ये शिला स्थापित हो जाती है| सभी लोग वहां काफी हैरान होते हैं क्योंकि धर्म पद केवल 12 वर्ष का था ,12 वर्ष के उस लड़के ने वह कार्य कर दिखाया जो 1200 वास्तु कारों के अपने अथक प्रयास के बावजूद वे सफल नहीं हो पाए,12 वर्ष के एक नन्हे बालक ने जिसे शिल्पकारी के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं था, उसने वह कार्य कर दिया जो इतने अनुभवी लोग नहीं कर पाए लेकिन बिसु इस बात से काफी परेशान थे ,कि जब राजा को यह बात पता चलेगी की इतने छोटे से कार्य को इतने अनुभवी लोग नहीं कर पाए जो छोटे से बालक ने कर दिया तो अंत में राजा सभी को मृत्युदंड दे देगा | इन बातों की वजह से बिसु ,मुख्य शिल्पकार काफी परेशान हो गया और अंत में उसने निराश होकर इन बातों को सोचते हुए , मंदिर के ऊपर गया और चंद्रभागा नदी में कूदकर अपनी जान दे दी |
कोणार्क का सूर्य मंदिर पूरा हो गया लेकिन कोणार्क के सूर्य मंदिर के पूरे होते ही, मुख्य शिल्पकार की वहां मृत्यु होना एक अपसगुन माना गया, ऐसा माना गया कि मंदिर अपवित्र हो गया है, और यही कारण है कि आज तक इस मंदिर में पूजा नहीं की जाती है |
लेकिन कोणार्क का सूर्य मंदिर भारत के सात आश्चर्य में से एक माना जाता है उड़ीसा का एकमात्र मंदिर जिसे विश्व धरोहर में शामिल किया गया है | मंदिर की वास्तुकला देखने योग्य है और यही कारण है कि यहां दर्शकों का ताता लगा रहता है, देश-विदेश से हजारों की संख्या में पर्यटक यहां आते हैं लेकिन आज तक यहां से मंदिर से आने वाली आवाजों को किसी ने सुना नहीं है इसे अफवाह ही माना जाता है| यदि आप भारतीय शिल्प कला को जानना चाहते हैं यदि आप भारतीय शिल्प कला को देखना चाहते हैं, तो आपको एक बार अवश्य ही कोणार्क के सूर्य मंदिर के दर्शन के लिए उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी से 21 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर में जाना चाहिए
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