Lepakshi Temple : The Mystery Behind Hanging Pillars-
भारत के प्राचीनता कि पहचान यहाँ मौजूद प्राचीन मंदिर, ऐतिहासिक इमारतों, और उनके वास्तु कला से होती है | भारतीय इतिहास इतना समृद्ध है, कि देश के हर हिस्से में एक से बढ़कर एक ऐतिहासिक स्थल, प्राचीन मंदिर, और भव्य महल मिल जाएंगे, और हर जगह से जुड़ी कई कहानियां भी | बात करें यहां मौजूद प्राचीन मंदिरों की तो यहां हर मंदिर के चमत्कार की एक अलग ही कहानी है |
आज हम जानेंगे ऐसे ही एक मंदिर के बारे में जहां एक पिलर हवा में झूल रहा है और मंदिर ज्यों का त्यों खड़ा है | साथ ही जानेंगे इस मंदिर के इतिहास के बारे में, दक्षिण भारत के प्रमुख मंदिरों में से एक लेपाक्षी मंदिर वैसे तो अपने वैभवशाली इतिहास के लिए प्रसिद्ध है लेकिन मंदिर से जुड़ा एक चमत्कार आज भी लोगों के लिए चुनौती बना है यह स्थान दक्षिण भारत में तीन मंदिरों के कारण प्रसिद्ध है जो भगवान शिव, भगवान विष्णु, और भगवान वीरभद्र को समर्पित है |
लेपाक्षी मंदिर दक्षिणी आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में स्थित है यह हिंदूपुर के 15 किलोमीटर पूर्व और उत्तरी बेंगलुरु से लगभग 120 किलोमीटर दूरी पर है | मंदिर एक कछुआ के खोल की तरह बने एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है लेपाक्षी मंदिर को हैंगिंग पिलर टेंपल के नाम से भी जाना जाता है यह मंदिर कुल 70 खंभों पर खड़ा है जिसमें से एक खंभा जमीन को छूता नहीं है बल्कि हवा में लटका हुआ है, इस एक झूलते हुए खंबे के कारण इसे हैंगिंग टेंपल कहा जाता है | यह पिलर भी पहले जमीन से जुड़ा हुआ था | ऐसा माना जाता है कि सालों पहले यहां एक ब्रिटिश इंजीनियर ने यह जानना चाहा की यह मंदिर खंभों पर कैसे टिका हुआ है उसने इस कोशिश में खम्बे को हिलाया और उसका धरती से संपर्क टूट गया | तब से लेकर आज तक यह खम्बा हवा में झूल रहा है |
मंदिर सोलवीं सदी में बनाया गया, और एक पत्थर की संरचना है, इस मंदिर की सबसे दिलचस्प पहलू हैं एक पत्थर का खंबा है वही पत्थर का खंभा जो हवा में लटका है यह स्तंभ लंबाई में 27 फुट और ऊंचाई में 15 फुट और एक नक्काशी दार स्तम्भ है लेपाक्षी मंदिर के अनोखे खंबे आकाश स्तंभ के नाम से भी जाने जाते हैं इसमें एक खम्भा जमीन से करीब आधा इंच ऊपर उठा हुआ है ऐसी मान्यता है कि खंबे के नीचे से कुछ निकालने से घर में सुख-समृद्धि आती है यही वजह है कि यहां आने वाले लोग खम्बे के नीचे से कपड़ा निकालते हैं|
इसके अलावा इस मंदिर का संबंध रामायण काल से भी जुड़ा हुआ है बताते चलें इस मंदिर में इष्ट देव श्री वीरभद्र है इस मंदिर का निर्माण 1583 में दो भाइयों वीरुपन्ना और वीरन्ना ने करा था जो कि विजयनगर राजा के यहां काम करते थे हालांकि पौराणिक मान्यता यह है कि लेपाक्षी मंदिर परिसर में स्थित वीरभद्र मंदिर का निर्माण ऋषि अगस्तय ने करवाया था|
इस जुलते हुवे खम्बे के आलावा यहां एक और देखने वाली चीज़ है , यहां मौजूद एक पैर का निशान जिस को लेकर अनेक मान्यताएं हैं इस निशान को त्रेता युग का गवा माना जाता है कोई इसे श्रीराम का पैर तो कोई माता सीता के पैर का निशान मानते हैं बताते हैं कि यह वही स्थान है जहां जटायु ने भगवान राम को रावण का पता बताया था इस धाम में मौजूद एक स्वयंभू शिवलिंग भी है जिसे शिव का रूद्र अवतार यानी वीरभद्र अवतार माना जाता है |
15 वीं शताब्दी तक यह शिवलिंग खुले आसमान के नीचे विराजमान था लेकिन विजयनगर रियासत में इस मंदिर का निर्माण शुरू किया गया वो भी एक अद्भुत चमत्कार के बाद,यहां मौजूद शेषनाग नंदी की विशालकाय मूर्ति से थोड़ी दूर पर ही शेषनाग की एक अनोखी प्रतिमा भी है बताया जाता है कि करीब 450 साल पहले यह मूर्ति एक स्थानीय शिल्पकार ने बनाई थी इसे बनाए जाने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है | नंदी और शेषनाग का एक साथ एक जगह पर होना, यह इशारा था कि मंदिर के भीतर महादेव भगवान विष्णु से जुड़ी कई और अद्भुत कहानी है |
लेपाक्षी मंदिर में मौजूद एक नृत्य मंच और आसपास के क्षेत्र में शादियों का आयोजन करने के लिए एक कल्याण मंडप भी है | वहीं मंदिर की छत पर बने आकर्षक शिव पेंटिंग,औरअपने झूलते हुए चमत्कार के कारण सभी को आकर्षित करता है वहीं दूसरी ओर भारत के प्राचीन इतिहास और प्राचीन वास्तु कला को भी दर्शाता है |
Lepakshi Temple : The Mystery Behind Hanging Pillars
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