सिंधु घाटी सभ्यता ( Indus Valley Civilization )
👉हड़प्पा सभ्यता ( Harappa Civilization ) -
अक्सर पुरानी इमारते अपनी कहानियां बताती है, लगभग डेढ़ सौ साल पहले जब पंजाब में पहली बार रेलवे लाइनें बिछाई जा रही थी तो इस काम में जुटे इंजीनियरों को, अचानक हड़प्पा पुरास्थल मिल गया, जो आधुनिक पाकिस्तान में है। उन्होंने सोचा कि यह एक ऐसा खंडर है, जहां से अच्छी ईंटे मिलेंगी। यह सोचकर वह हड़प्पा के खंडहरों से हजारों ईंटे उखाड़कर ले गए, जिससे उन्होंने रेलवे लाइनें बिछाने शुरू कर दी इस कारण कई इमारतें पूरी तरह नष्ट हो गई। इसके बाद 1920 में शुरुआती पुरातत्वविदो ने इस स्थल को ढूंढा, तब पता चला कि यह उपमहाद्वीप के सबसे पुराने शहरों में से एक था, क्योंकि इस इलाके का नाम हड़प्पा था इसीलिए बाद में यहां से मिलने वाली सभीपुरातात्विक वस्तुओं और इमारतों का नाम हड़प्पा सभ्यता के नाम पर पड़ा। इन नगरों का निर्माण लगभग 4700 साल पहले हुआ था।
➡️क्या विशेषता थी इन नगरों कि-
इन नगरों में से कई को दो या उससे ज्यादा हिस्सों में विभाजित किया गया था। प्राय: पश्चिमी भाग छोटा था, लेकिन ऊंचाई पर बना हुआ था, और पूर्वी हिस्सा बड़ा था। लेकिन यह निचले हिस्से में था। ऊंचाई वाले भाग को पूरा तत्वों ने नगर दुर्ग कहा है और निचले हिस्से को निचला नगर कहा हैं। दोनों हिस्सों की चारदीवारीयां पक्की ईंटो की बनाई गई थी। इसकी ईंटे इतनी अच्छी तरह पक्की थी कि हजारों सालों बाद आज तक उनकी दीवारें खड़ी रही। दीवार बनाने के लिए ईंटों की चिनाई इस तरह करते थे जिससे की दीवारें सालों साल मजबूत रहे कुछ नगरों के नगर दुर्ग में कुछ खास इमारते बनाएं गयी थी, मिसाल के तौर पर मोहनजोदड़ो में एक खास तालाब बनाया गया था जिसे पूरा तत्व वेदो ने महान स्नानागार कहा था। इस तालाब को बनाने में ईट और प्लास्टर का इस्तेमाल किया गया था, इसमें पानी का रिसाव रोकने के लिए प्लास्टर के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गई थी। इस सरोवर में दो तरफ से उतरने के लिए सीढ़ियां बनाई गई थी, और चारों और कमरे बनाए गए थे। इसमें भरने के लिए पानी कुएँ से निकाला जाता था। उपयोग के बाद इसे खाली कर दिया जाता था। शायद यहां विशिष्ट नागरिक विशेष अवसरों पर स्नान किया करते थे। कालीबंगा और लोथल जैसे अन्य नगरों में अग्निकुंड भी मिले हैं , यहां सम्भवः यग किये जाते होंगे। मोहनजोदड़ो और लोथल जैसे नगरों में बड़े-बड़े भंडार गृह भी मिले हैं। इन नगरों के घर आमतौर पर एक या दो मंजिले होते थे। घर के आंगन के चारों ओर कमरे बनाए जाते थे इसके अलावा अधिकांश घरों में अलग-अलग स्नानघर भी होते थे और कुछ घरों में तो कुएं भी बने होते थे। कई नगरों में ढके हुए नाले होते थे इन्हे सावधानी से सीधी लाइन में बनाया गया था, हर नाली मे हल्की ढलान होती थी ताकि पानी आसानी से बह सके। अक्सर घरो की नालियों को सड़कों की नालियों से जोड़ दिया जाता था, जो बाद में बड़े-बड़े नालों में मिल जाती थे। नालो के ढके होने के कारण में इनमे जगह-जगह पर मेन होल बनाए गए थे, जिनके जरिए इनकी देखभाल और सफाई की जा सके। घर नाले और सड़कों का निर्माण योजनाबद्ध तरीके से एक साथ ही किया जाता था। इन सभी बातों को देखते हुए पता चलता है कि हड़प्पा सभ्यता 4500 साल पहले भी कितनी विकसित थी।
➡️नगरीय जीवन -
हड़प्पा के नगरों में बड़ी हलचल रहा करती होगी, यहां पर ऐसे लोग रहते होंगे जो नगर की खास इमारतें बनाने की योजना में जुटे रहते थे। यह संभवत यहां के शासक थे, यह भी संभव है कि यह शासक लोगों को भेजकर दूर-दूर से धातु बहुमूल्य पत्थर और अन्य उपयोगी चीजें मंगवाते थे, शायद शासक लोग खूबसूरत मनको तथा सोने चांदी से बने आभूषणों जैसी कीमती चीजों को अपने पास रखते होंगे। इन नजरों में लिपिक भी होते थे जो मोहरों पर तो लिखते ही थे, और शायद अन्य चीजों पर भी लिखते होंगे, जो बच नहीं पाई हैं। इसके अलावा नगरों में शिल्पकार स्त्री पुरुष भी रहते थे जो अपने घरों या किसी अन्य स्थान पर तरह-तरह की चीजें बनाते होंगे। लोग लंबी यात्राएं भी करते थे और वहां से उपयोगी वस्तुएं लाते थे। इसके साथ ही वे अपने साथ लाते थे सुदूर देशों की किस्से कहानियां। हड़प्पा सभ्यता की खुदाई के दौरान मिट्टी से बने खिलौने भी मिले हैं जिनसे, उस समय के बच्चे खेला करते होंगे।
➡️हड़प्पा के नगरों से प्राप्त वस्तुएं -
पूरातत्ववेदो को जो चीज है वहां मिली है उनमें अधिकतर पत्थर ,शंख, तांबे कांसे, सोना और चांदी जैसी धातुओं से बनाई गई थी। तांबे और कांसे से औजार, हथियार, गहने और बर्तन बनाए जाते थे। यहां मिली सबसे आकर्षक वस्तुओं में मनके, बाट, और फलक है। हड़प्पा सभ्यता के लोग पत्थर की मोहरे बनाया करते थे। इन आयताकार मोहरो पर सामान्यत जानवरों के चित्र मिलते हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोग लाल मिट्टी के बर्तन बनाते थे, जिन पर काले रंग के खूबसूरत डिजाइन भी बने होते थे। हड़प्पा में लोगों को कई चीजें वही मिल जाया करते थी, लेकिन तांबा, लोहा, सोना-चांदी और बहुमूल्य पदार्थों का आयात करते थे। हड़प्पा के लोग तांबे का आयात सम्भवत: आज के राजस्थान से करते थे। यहां तक कि पश्चिमी एशियाई देशों से भी तांबे का आयात किया जाता था। कैसा बनाने के लिए तांबे के साथ मिलाए जाने वाली धातु, टिन का आयात आधुनिक ईरान और अफगानिस्तान से किया जाता था। सोने का आयात आधुनिक कर्नाटक और बहुमूल्य पत्थर का आयात गुजरात, ईरान, और अफगानिस्तान से किया जाता था। हड़प्पा सभ्यता के लोग हजारों साल पहले आयात निर्यात के द्वारा व्यापार भी किया करते थे। लोग नगरों के अलावा गांव में भी रहते थे, वे अनाज उगाते थे, और जानवर पालते थे। किसान और चरवाहे शहरों में रहने वाले शासकों, लेखकों और दस्तकारों को खाने के सामान देते थे। पौधों के अवशेषों से पता चलता है कि हड़प्पा के लोग गेहूं, जौ, मटर, और सरसों आदि उगाते थे। उस समय जमीन की जुताई के लिए हल का प्रयोग एक नई बात थी। हड़प्पा काल के हल तो नहीं बच पाए हैं क्योंकि वे प्राय लकड़ी से बनाए जाते थे, लेकिन हल के आकार के खिलौने मिले हैं, इससे यह साबित होता है कि उस समय खेती के लिए हलो का प्रयोग भी किया जाता था। हरप्पा के लोग गाय, भैंस, भेड़ और बकरियों को भी पालते थे। बस्तियों के आस पास तालाब और चारागाह होते थे लेकिन सूखे महीनों में मवेशियों के झुंडो को चारा पानी की तलाश में दूर-दूर तक ले जाया जाता था। वे बेर जैसे फलों को इकट्ठा करते थे, मछलियां पकड़ते थे, और हिरण जैसे जानवरों का शिकार भी किया करते थे।
➡️गुजरात में हड़प्पा कालीन नगर -
कच्छ के इलाके में खादिर बेट के किनारे धोलावीरा नगर बसा था। वहाँ साफ पानी मिलता था, और जमीन भी उपजाऊ थी। जहां हड़प्पा सभ्यता के कई नगर दो भागों में विभक्त थे वही धौलावीरा नगर को तीन भागों में बांटा गया था। इसके हर हिस्से के चारों ओर पत्थर की ऊंची-ऊंची दीवार बनाई गई थी। इसके अंदर जाने के लिए बड़े-बड़े प्रवेश द्वार भी थे। इस नगर में एक खुला मैदान भी था जहां सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। यहां मिले कुछ अवशेषों में हड़प्पा लिपि के बड़े-बड़े अक्षरों को पत्थरों में खुदा पाया गया है। इन अभिलेखों को संभवत लकड़ी में जड़ा गया था। यह अनोखा अवशेष है क्योंकि आमतौर पर हड़प्पा के लेख मुहर जैसी छोटी वस्तुओ पर ही पाए जाते हैं। गुजरात की खंभात की खाड़ी में मिलने वाली साबरमती की एक उपनदी के किनारे बसा लोथल नगर ऐसे स्थान पर बसा था, जहां कीमती पत्थर जैसा कच्चा माल आसानी से मिल जाता था। यह पत्थरो, शंखो, और धातुओ से बनाई गई चीजों का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। इस नगर में एक भण्डार गृह भी था। यहां पर एक इमारत भी मिली है जहां संभवत: मनके बनाने का काम होता था पत्थर के टुकड़े आधे-अधूरे मनके,और मनके बनाने वाले उपकरण भी यहां मिले हैं।
➡️ हड़प्पा सभ्यता का अंत-
लगभग 3900 साल पहले एक बड़ा बदलाव देखने को मिलता है अचानक लोगों ने इन नगरों को छोड़ दिया। लेखन, मोहर और बाटो का प्रयोग बंद हो गया। दूर-दूर से कच्चे माल का आयात भी काफी कम हो गया था। मोहनजोदड़ो में सड़कों पर कचरे के ढेर बनने लगे। जल निकास प्रणाली नष्ट हो गई , और सड़कों पर ही झुगी नुमा घर बनाए जाने लगे। आखिर यह सब क्यों हुआ, यह आज भी एक रहस्य है। कुछ विद्वानों का कहना है कि नदियां सूख गई थी। अन्य का कहना है कि जंगलों का विनाश हो गया था। इसके अलावा मवेशियों के बड़े-बड़े झुंडो से चारागाह और घास वाले मैदान समाप्त हो गए होंगे। कुछ इलाकों में बाढ़ आ गई ,लेकिन इन कारणों से यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि सभी नगरों का अंत कैसे हो गया, क्योंकि बाढ़ और नदियों के सूखने का असर तो कुछ ही इलाकों में हुआ होगा। ऐसा लगता है कि उस समय के शासकों का नियंत्रण समाप्त हो गया था। खैर जो भी हुआ हो परिवर्तन का असर बिल्कुल साफ दिखाई देता है आधुनिक पाकिस्तान के सिंध और पंजाब की बस्तियां उझड़ गई थी। कई लोग पूर्व और दक्षिण के इलाकों में नई और छोटी बस्तियों में जाकर बस गए। इसके लगभग 1400 साल बाद नए नगरों का विकास हुआ।
👉महत्वपूर्ण :-
हड़प्पा ( Harappa ) -
- सिंधु सभ्यता का प्रथम शहर हड़प्पा था।
- हड़प्पा सभ्यता की खोज दयाराम साहनी ने 1921 में की।
- हड़प्पा सभ्यता पश्चिम पंजाब और पाक में स्थित हैं।
- हड़प्पा रावी नदी के किनारे हैं।
- 12 कक्षों का अन्नागार, 891 मुहरे,श्रमिक आवास , नाभि से पादप उगते हुए मातृ देवी की मुहरे।
मोहनजोदड़ो ( Mohan Jodaro ) -
- खोजकर्ता - राखलदास बनर्जी।
- यह सिंधु नदी के किनारे स्थित हैं ( लरखना जिला पकिस्तान )
- मोहन जोदड़ो में एक सभा भवन की खोज की गयी थी।
- मोहनजोदड़ो शब्द का अर्थ - मृतकों का टीला।
- इसमें एक वृहत स्नानागार मिला है।
- इसमें कपडे के टुकड़े के साक्ष्य भी मिले है।
- कांसे की नृत्यांगना, पुरोहित राजा की प्रतिमा और पशुपति मोहरे भी मोहन जोदरो से प्राप्त हुयी हैं।
कालीबंगा ( Kali banga ) -
- खोजकर्ता - ए - घोष, बी. बी. लाल, बी. क.थापर (1952 )
- यह घग्घर नदी के किनारे स्थित है।
- कालीबंगा शब्द का अर्थ - '' काले रंग की चुडिया '' .
- यहां पर विश्व के सबसे प्राचीन जुते हुए खेत के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
- यहां पर 7 अग्निकुंड के साक्ष्य मिले है।
- यहां मकान कच्ची ईंटो से बने होते थे।
लोथल ( Lothal ) -
- सिंधु संस्कृति का एक मात्र कृत्रिम बंदरगाह है।
- खोजकर्ता - एस. आर. राव ( 1957 )
- यह भगवा नदी के किनारे अहमदाबाद, गुजरात में स्थित है।
- लोथल में चावल की खेती के प्राचीन प्रमाण मिले हैं।
- अग्नि कुंड व घोड़े की टेराकोटा प्रतिमा मिली हैं।
- लोथल में पंचतंत्र की कहानी जैसा चालक लोमडी का चित्र मिला है।
धोलावीरा ( Dholavi -
- खोजकर्ता - जे. पी. जोशी
- यह लूणी नदी के किनारे कच्छ के रण , गुजरात में स्थित है।
- इसमें पथरीले क्षेत्र में जलाशय, स्टेडियम, सुरक्षा प्रहरी का कमरा तथा नाम पट्टिका मिले है।
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