Jagannath Temple Puri, Odisa | Jagannath Puri Rath Yatra | Jagannath Puri Flag facts | Jagannath Puri History in hindi जगन्नाथ मंदिर के अद्भुत रहस्य और इतिहास

जगन्नाथ मंदिर के अद्भुत रहस्य और इतिहास :-

Jagannath Temple Puri, Odisa :-

Jagannath Puri Rath Yatra


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भारत को ज्ञान की धरती कहा जाता है इसलिए इसे इतिहास में विश्व गुरु कहा जाता था। आज भारत में भी इतिहास की बहुत ही कम निशानियां स्थित है जो चीख - चीख कर गवाही देती हैं कि इतिहास ही हमें भविष्य में ले जा सकता है। ऐसे ही इतिहास की गवाही देते अनेकों मंदिर आपको भारत के कोने-कोने में मिल जाएंगे हम ऐसे ही मंदिरों को ढूंढ - ढूंढ कर आपके लिए लेकर आते हैं और आज हम आपके लिए ऐसा ही ज्ञान और रहस्यो से भरा मंदिर लेकर आए हैं जिसके बारे में तो आपने जरूर सुना होगा लेकिन आज हम उसके कहीं छिपे रहस्यों को भी आपको बताने वाले हैं यह मंदिर है पूरी का जगन्नाथ मंदिर जो उड़ीसा के पुरी शहर में स्थित है।

आज हम बात करेंगे भारत के पवित्र चार धामों में से एक भगवान जगन्नाथ पुरी की इस पोस्ट के माध्यम से हम जानेंगे भगवान जगन्नाथ पुरी से जुड़े इतिहास और कुछ रोचक तथ्यों को, पुराणों में जगन्नाथ पुरी को धरती का बैकुंठ कहा गया है, ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार पुरी में भगवान विष्णु ने पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतार लिया था | वह यहां सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए थे सबर जनजाति के देवता होने के कारण यहां भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की तरह है पुरी के जगन्नाथ मंदिर की महिमा देश ही नहीं बल्कि विश्व भर में प्रसिद्ध है |

जगन्नाथ मंदिर का चमत्कारी झंडा (Jagannath Puri Temple Flag) -

जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर स्थित झंडा हमेशा हवा के विपरीत दिशा में ही लहराता है। इसी तरह मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है इस चक्र को किसी भी दिशा से खड़े होकर देखने पर ऐसा लगता है कि चक्र का मुंह आपकी तरफ ही है |

Jagannath Puri Rath Yatra
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जगन्नाथ मंदिर में प्रसाद का चमत्कार (Jagannath Puri Mahaparsad)-

मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए सात बर्तन एक दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं यह प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी पर ही पकाया जाता है लेकिन आश्चर्यजनक तौर पर इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान ही सबसे पहले पकता है और फिर नीचे की तरफ एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है | मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता जबकि मंदिर के पट बंद होते ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखने पर ही आप समुद्र की लहरों से आने वाली आवाज को नहीं सुन सकते | आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देने लगती है | यह अनुभव शाम के समय और भी अलौकिक लगता है।

जगन्नाथ पूरी के मंदिर ऊपर से कोई भी पक्षी नहीं गुजरते -

(Birds and Planes not fly above the Jagannath Temple of Puri)-

हमने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे और उड़ते देखे हैं पर जगन्नाथ मंदिर की यह बात आपको चौंका देगी की इसके ऊपर से कोई भी पक्षी नहीं गुजरता | यहां तक कि हवाई जहाज भी मंदिर के ऊपर से नहीं निकलते।

जगन्नाथ मंदिर के शिखर की परछाई नहीं बनती (Jagannath Puri Flag facts) -

दिन के किसी भी समय जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती। एक पुजारी मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदलता है ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा आमतौर पर दिन में चलने वाली हवा समुद्र से धरती की ओर चलती है और शाम को धरती से समुद्र की ओर हैरान कर देने वाली बात यह है कि पूरी में यह प्रक्रिया उल्टी है।

गैर हिन्दुओं का जाना वर्जित (Non-Hindus, Why aren't Allowed in in Jagannath Temple?)-

पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर एक हिंदू मंदिर है जो भगवान जगन्नाथ यानी श्रीकृष्ण को समर्पित है | यह भारत के उड़ीसा राज्य के तटवर्ती शहर पूरी में स्थित है जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत का स्वामी होता है इनकी नगरी जगन्नाथपुरी या पूरी कहलाती है | इस मंदिर को हिंदुओं के चार धामों में से गिना जाता है यह वैष्णव संप्रदाय का मंदिर है कि भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है |

जगन्नाथ पूरी के बारे में प्रचलित कथा (The Story Behind Jagannath Puri) -

पहले श्री जगन्नाथ पुरी, नीलमाधव के नाम से पुकारे जाते थे जो भील सरदार विश्वासु के आराध्य देव थे। आज से लगभग हजारों वर्ष पहले भील सरदार विश्वासु नील पर्वत की गुफा के अंदर नील माधव जी की पूजा अर्चना किया करते थे। यह मंदिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा हुआ है। यह गोड़िये वैष्णव संप्रदाय के लिए खास महत्व रखता है इस पंथ के संस्थापक श्री चैतन्य महाप्रभु भगवान की ओर आकर्षित हुए थे, और कई वर्षों तक पूरी में भी रहे थे। गंग वंश के हाल ही में मिले ताम्रपत्र से यह ज्ञात हुआ है, कि वर्तमान मंदिर के निर्माण कार्य को कलिंग राजा अनंतवर्मन चोड गंगदेव ने प्रारंभकरवाया था। मंदिर के जगमोहन और विमान भाग इन के शासनकाल में बने , बाद में 1197 में जाकर उड़िया शासक अनंग भीमदेव ने इस मंदिर को वर्तमान स्वरूप दिया। मंदिर में भगवान जगन्नाथ की पूजा सन 1558 तक होती रही। इस वर्ष अफगान जनरल कालापहाड़ ने उड़ीसा पर हमला किया और मूर्तियां तथा मंदिर के भाग ध्वस्त कर दिए और पूजा बंद कर दी।

जगन्नाथ मंदिर के अद्भुत रहस्य (Mystery of Jagannath Puri temple)-

इस मंदिर के उद्गम से जुड़ी परंपरागत कथा के अनुसार भगवान जगन्नाथ की इंद्र नील या नीलमणि से निर्मित मूल मूर्ति एक छोटे पेड़ के नीचे मिली थी, यह इतनी चकाचौंध करने वाली थी, कि धर्म ने इसे पृथ्वी के नीचे छुपाना चाहा। कहते हैं कि, मालवा नरेश इंद्रद्युम्न को स्वप्न में यह मूर्ति दिखाई दी थी। उसने कड़ी तपस्या की और तब भगवान विष्णु ने उसे कहा कि वह पूरी के समुद्री तट पर जाए, जहां उसे लकड़ी का एक लट्ठा मिलेगा। उसी लकड़ी से वो एक मूर्ति का निर्माण करवाएं, राजा ने ऐसा ही किया और उसे लकड़ी का लट्ठा मिल भी गया।

जगन्नाथ मंदिर के अद्भुत रहस्य और इतिहास (Jagannath Puri History in hindi)-

उसके बाद राजा के सामने भगवान विष्णु और विश्वकर्मा एक बढ़ई और मूर्तिकार के रूप में सामने आए उन्होंने यह शर्त रखी कि वह 1 महीने में यह मूर्ति तैयार कर देंगे, परंतु तब तक वो एक कमरे में बंद रहेंगे और राजा या कोई भी उस कमरे में अंदर नहीं जाएगा। महीने के खत्म होने पर कई दिनों तक कोई भी आवाज नहीं आई तो उत्सुकतावश राजा ने कमरे में झांका और वो वृद्ध कारिगर कमरे का द्वार खोल कर बाहर आ गया और राजा से कहा कि मूर्तियां अभी पूरी नहीं बनी, उनके हाथ अभी नहीं बने हैं। राजा के अफसोस करने पर मूर्तिकार ने बताया कि यह सब देव्य शक्ति के कारण हुआ है और यह मूर्तियां ऐसे ही स्थापित होकर पूजी जाएंगी। तब वहीं तीनों जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा की मूर्तियां मंदिर में स्थापित कर दी गई।

कुछ इतिहासकारों का मत है कि इस मंदिर के स्थान पर पूर्व में एक बौद्ध स्तूप होता था | उस स्तूप में गौतम बुध का एक दांत रखा गया था | बाद में इसे श्रीलंका की कैंडी में पहुंचा दिया गया, जो इसकी वर्तमान जगह है। महान सिंह सम्राट महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर को प्रचुर मात्रा में सोना दान दिया था जो कि उनके द्वारा अमृतसर स्वर्ण मंदिर को दिए गए सोने से भी अधिक था |उन्होंने अपने अंतिम दिनों में यह भी इच्छा जाहिर की थी, कि विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा जो विश्व में अब तक का सबसे मूल्यवान और सबसे बड़ा हीरा है इस मंदिर को दान कर दिया जाए लेकिन यह संभव ना हो सका क्योंकि उस समय तक अंग्रेजों ने पंजाब पर अपना अधिकार कर लिया था उनकी सारी शाही संपत्ति को अंग्रेजों ने जप्त कर लिया।

जगन्नाथ मंदिर की ऊंचाई (Jagannath Temple Hieght)-

यह मंदिर चारदीवारी से गिरा है कलिंग शैली के मंदिर स्थापत्य कला और शिल्प के आश्चर्यजनक प्रयोग से परिपूर्ण यह मंदिर भारत के भव्यतम स्मारक स्थलों में से एक है। मुख्य मंदिर वक्र रेखीय आकार का है जिसके शिखर पर भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र स्थित है इसे निलचक्र भी कहा जाता है | यह चक्र अष्ट धातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है मंदिर का मुख्य ढांचा 214 फीट ऊंचे एक पत्थर के चबूतरे पर बना है इसके भीतर आंतरिक गर्भ गृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित है मुख्य भवन 20 फीट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है तथा दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है। एक भव्य 16 किनारों वाला एक आश्रम स्तंभ मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित है इस के द्वार पर दो सिंहो को भी स्थापित किया गया था। कहा जाता है कि यह सिंह मंदिर की रक्षा के लिए है

जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा, ओडिसा (Jagannath Puri Rath Yatra ( Odisa )

यहा विस्तृत दैनिक पूजा अर्चना होती हैं। यहां कई वार्षिक त्योहार भी आयोजित किए जाते हैं जिनमें दुनिया भर के हजारों लोग भाग लेते हैं इनमें सर्वाधिक महत्व का त्यौहार है रथयात्रा। जो आषाढ़ शुक्लपक्ष की द्वितीया को लगभग जून या जुलाई के महीने में आयोजित होता है | इस मंदिर का वार्षिक रथयात्रा महोत्सव पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है इसमें मंदिर के तीन मुख्य देवता भगवान जगन्नाथ उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा तीनों तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथो में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं। इस उत्सव में तीनो मूर्तियों को अति भव्य और विशाल रथो में सुसज्जित होकर, यात्रा पर निकाला जाता है। यह यात्रा 5 किलोमीटर लंबी होती है और इसमें लाखों लोग शामिल होते हैं।

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